लोहड़ी माता की कथा
लोहड़ी माता का इतिहास जानने के लिए संपूर्ण लेख पढ़ना अनिवार्य है। लोहड़ी माता की कहानी जानने से पहले आप सभी को नरवर किले के बारे में जानना जरूरी है। तो चलिए फिर पहले हम बात करते हैं नरवर किले के बारे में।
नरवर किला एक ऐतिहासिक किला माना गया है जिसके ऊपर बहुत ही प्राचीन कथाएं हैं जिनमें से एक Lohri Mata Ki Kahani है। तो आज हम केवल लोहड़ी माता की कथा के बारे में ही जानेंगे। लोहड़ी माता के बारे में विख्यात रूप से तो कोई भी नहीं बता सकता परंतु जितना हो पाएगा हम कोशिश करेंगे कि आपको लोड़ी माता के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाए।
नरवर किला का इतिहास
नरवर किला और लोहड़ी माता का इतिहास ग्वालियर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला शिवपुरी के नरवर शहर से संबंधित है। नरवर का इतिहास करीब 200 वर्ष पुराना है। 19वीं सदी में नरवर राजा ‘नल’ की राजधानी हुआ करती थी। नल नामक एक राजा हुआ करते थे। नरवर जोकि बीसवीं शताब्दी में नल पुर निसदपुर नाम से भी जाना जाता था। बताया जाता है कि नरवर का किला समुद्र से 1600 और भू तल से 5 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
नरवर किले का क्षेत्रफल करीब 7 किलोमीटर में फैला हुआ है और इसी नरवर किले के सबसे नीचे वाले हिस्से में लोड़ी माता का मंदिर है। वहां का लोहड़ी माता का मंदिर बहुत ही विख्यात है और इतनी प्रसिद्दि के साथ वहां बहुत लोग दर्शन करने जाते हैं। उत्तर भारत और मध्य भारत में लोहड़ी माता की काफी अधिक प्रसिद्धि है। इस किले के खंडहर होने का एकमात्र कारण पुरातत्व विभाग का सही रखरखाव ना रखना ही है। अगर वह पुरातत्व वाले इस किले का रखरखाव सही से करते तो आज यह खंडहर नहीं होता। अब इस किले को टूरिस्ट एडवेंचर स्पोर्ट के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
नल राजा जोकि नरवर का जो राजा हुआ करता था उसे जुआ सट्टा खेलने का बहुत ही गंदी लत थी जिसके कारण नरवर राज्य अपने जिले में सारी की सारी संपत्ति हार गया था बाद में राजा नल के पुत्र मारू ने नरवर को जीता और वहां राजकीय नरम मारू एक बहुत ही अच्छा राजा माना गया था। मारू ढोला प्रेम कहानी जो कि पूरे राजस्थान में सबसे ज्यादा लोकप्रिय मानी जाती है।
बात करते हैं लोड़ी माता की नरवर किले के निचले हिस्से में जहां से शुरुआत होती है उसके अंदर जाने कि वहां लोड़ी माता का मंदिर बना हुआ है, यह मंदिर बहुत विख्यात है और यहां की प्रस्तुति बहुत ज्यादा मान्यता में मानी जाती है और इस मंदिर का इतिहास भी राजा नल के इतिहास से जुड़ा हुआ है। नरवर की स्थानीय कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि लोड़ी माता न समुदाय से ताल्लुक रखती थी। बताया जाता है कि लोड़ी माता को तांत्रिक विद्या में महारत हासिल थी। वह धागे के ऊपर चलने का असंभव सा काम भी किया करती थी।
जब लोहड़ी माता ने अपने कारनामा राजा नल के भरे दरबार में दिखाया तो राजा नल के मंत्री ने लोहड़ी माता से जलन के कारण वह धागा काट दिया जिसके कारण लोहड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गयी। तभी से लोढ़ी माता के श्राप से नरवर का किला खंडहर में बदल गया। वर्तमान समय में लोड़ी माता का मंदिर, लोड़ी माता के भक्तों ने बनवाया है। यहां पूजा करने के साल भर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है।
लोड़ी माता की मान्यता बहुत दूर-दूर तक है और प्रत्येक वर्ष हजारों लाखों की तादाद में लोग लोड़ी माता के दर्शन करने जाते हैं। आपको यह कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं। आशा करता हूं आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी और यह सत्य कहानी है, कहा जाता है लोड़ी माता के यहां जाकर सारी की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है।
तो दोस्तों उम्मीद करता हूं कि नरवर किले की कहानी और लोहड़ी माता की कथा आपको अच्छी लगी होगी। इसके अलावा भी अगर आप किसी अन्य की कहानी जानना चाहते हैं तो हमें जरूर बताएं हम आपके कमेंट का रिप्लाई जरूर देंगे। धन्यवाद